आजकल के समय, खान पान और लाइफ स्टाइल को देखते हुए हमसबको हेल्थ की जितनी चिंता होनी चाहिए उससे ज्यादा हेल्थ खराब होने पर इलाज़ के पैसे कहाँ से आएंगे, इसकी चिंता होनी चाहिए। खास करके भारत में जहा इतनी बड़ी आबादी मिडिल क्लास और गरीब परिवारों की है।
भारत सरकार के सर्वे के हिसाब से भारत में जो सम्पन्न परिवार है उनकी वार्षिक इनकम 30 लाख से ऊपर होती है और मिडिल क्लास परिवार है उनकी 5 से 30 लाख, जो आकांक्षी परिवार है वो की 1.25 लाख से 5 लाख और जो निराश्रित परिवार है वो 1.25 लाख से कम कमाते है।
अब आप खुद से पूछिए की अगर इन सभी वर्गो में से किसी के परिवार जनों को कोई गंभीर बीमारी हो जाएगी जिसका खर्चा लाखो में आएगा ( जोकि आजकल आम बात है) तो कौन सा वर्ग इस खर्चे को आसानी से उठा पाएगा। बीमारीयां आपकी इनकम पूछ कर आपके जीवन में नहीं आती। हमें हमेसा जीवन में आने वाले खतरों के लिए पहले से तैयारी रखनी चाहिए।
और इसी तैयारी का नाम है हेल्थ इन्शुरन्स। आज इस आर्टिकल के माध्यम से हम सब अपनी अपनी समझ को बढ़ते हुए ये जानेगे की, हेल्थ इन्शुरन्स क्या होता है? सही हेल्थ इन्शुरन्स लेते कैसे है ? इसके फायदे और नुकसान और हेल्थ इन्शुरन्स लेते समय किन किन बातों का ध्यान रखे। ये सब जानने के बाद आपके सारे डाउट क्लियर हो जाएगें।
हेल्थ इन्शुरन्स क्या है?
हेल्थ इन्शुरन्स एक बिमा है जो सरकारी या निजी कंपनियां ये सुविधा प्रदान करती है।ये एक बिमा कर्ता कंपनी और एक बिमा धारक व्यक्ति के बिच अनुबंध(contract) होता है इससे आपके स्वास्थ्य चिकित्सा में लगने वाले खर्चो से आपको राहत दिया जाता है। कोई भी व्यक्ति किसी इन्शुरन्स कम्पनी से जब स्वस्थ्य बिमा कराता है तो कंपनी उससे एक तय क़िस्त लेती है जो महीने की या साल की हो सकती है।
फिर जब भी वो व्यक्ति बीमार हो जाए तो क्लेम करने के बाद उसके चिकित्सा में लगने वाला खर्च ये इन्शुरन्स कंपनियां उठाएंगी। ताकि आपकी चिकत्सा में लगने वाला खर्च आपकी जेब पर भारी न पड़े।
ये आपको छोटी बड़ी हर चिकित्सा के भारी भरकम खर्च से बचा लेगा जो शायद आप अपनी तरफ से भरने जाए तो आपके लिए बहुत ही मुश्किल हो। यही कारण है की हर इंसान को हेल्थ इन्शुरन्स लेना जरूरी है।
हेल्थ इन्शुरन्स के फायदे/ लाभ
इसके बहुत से फ़ायदे है
- चिकित्सा खर्चो से बचाव – हम सब जानते है की हर साल हमारे बजट से ज्यादा कुछ खर्चे निकल आते है अब उसमे से किसी बीमारी का खर्च भी उठाना पड़ा तो हमारा क्या हाल होगा। इसी डॉ से छुटकारा देता है हेल्थ इन्शुरन्स।
- टैक्स में छूट – सेक्शन 80 D के तहत अगर अपने कोई इन्शुरन्स लिया है तो आपको टैक्स में भी छूट दी जाती है क्यूंकि सरकार भी इन्शुरन्स के महत्व को समझती है।
- चिंता से मुक्ति – चिकित्सा खर्चे और खास करके लाखो के खर्चे से अगर आपको राहत मिलती है तो सचमे ये आपको चिंता मुक्त कर देता है।
हेल्थ इन्शुरन्स कितने प्रकार की होती है ?
ये विभिन्न प्रकार के होते है जैसे –
- इंडीविसुअल (individual)हेल्थ इन्शुरन्स – जैसा की नाम से पता चल रहा है ये पालिसी सिर्फ एक सिंगल व्यक्ति को ही कवर करेगी।
- फॅमिली फ्लोटर हेल्थ इन्शुरन्स – इसमें आपके साथ आपकी फॅमिली भी शामिल होगी जैसे (आप आपकी पत्नी या पति, आपके माता-पिता )
- सीनियर सिटीजन हेल्थ इन्शुरन्स – ये ऐसे लोगो के लिए बेस्ट इन्शुरन्स है जो बुजुर्ग है या फिर जो रिटायर हो चुके है या होने जा रहे है। इसमें बहुत सारी कंपनियों के तरफ से प्री डिजीज(अगर पहले से कोई बीमारी है) भी कवर की जाती है।
- क्रिटिकल इलनेस हेल्थ इन्सुरन्स– इस पालिसी में आपको गंभीर बिमारिओं जैसे हार्ट से सम्बन्धित, कैंसर या ब्रेन से संबधित रोगो इलाज में लगने वाले के खर्चो से निपटने के लिए आपको कवर देगा।
- सर्जिकल हेल्थ इन्शुरन्स – ये किसी भी तरह की सर्जरी के खर्चो से बचाने के लिए कवर देगा।
हेल्थ इन्शुरन्स के कुछ जरूरी पॉइंट्स
जो टेबल निचे दिए गए है उसे अच्छे से पढ़े और याद रखे। आपकी हेल्थ इन्शुरन्स पालिसी में येसब पॉइंट होने बहुत जरूरी है तभी आप एक अच्छा हेल्थ इन्शुरन्स ले पाएगे और आप अगर चाहे तो एक अच्छे इन्शुरन्स एजेंट की मदद भी ले सकते है चीज़ो को समझने के लिए। पर आप जब इन पॉइंट्स को पहले से जान रहे होंगे तो आपके लिए आसान हो जाएगा इन्शुरन्स की बारीकियों को समझना और एक अच्छा हेल्थ इन्शुरन्स लेना। तो चलिए जानते है –
पॉइंट्स | विवरण |
Solvency ratio(सॉवलेंसी रेश्यो) | 150 % या इससे ऊपर |
Claim settlement ratio(क्लेम रेश्यो) | 95 % से ऊपर |
Life time renewal (लाइफ टाइम रिन्यूअल) | होना चाहिए |
Co-pay (को – पे) | न हो |
Cashless plan (कैशलेस प्लान) | होना चाहिए |
Network hospital (नेटवर्क हॉस्पिटल) | आपके आसपास होना चाहिए |
Day care procedure (डे केयर प्रोसीजर) | होना चाहिए |
Pre and post hospitalize expenses (प्री एंड पोस्ट होपिटलाइज़ एक्सपेंसेस) | इन्शुरन्स कंपनी इसका खर्च उठाये |
Hospital’s room rent (हॉस्पिटल रूम रेंट) | इसमें कोई कैपिंग(सीमा) न हो |
Pre existing diseases (प्री एक्सिस्टिंग डिजीज) | ये कंपनी द्वारा कवर हो (कम वेटिंग पीरियड के साथ) |
Domiciliary procedure/ consultation (डोमिसिलिअरी प्रोसीजर) | ये कवर होना चाहिए |
Critical illness (क्रिटिकल इलनेस) | ये कवर होना चाहिए |
Maternity benefits (मैटरनिटी बेनिफिट्स) | ये कवर होना चाहिए (कम वेटिंग पीरियड के साथ ) |
No claim bonus (नो क्लेम बोनस) | होनी चाहिए |
Free medical check ups(फ्री मेडिकल चेक अप्स) | ये भी कवर होना चाहिए |
अब हम एक एक करके ऊपर के हर पॉइंट्स को विस्तार से समझेंगे –
Solvency ratio(सॉल्वेंसी रेश्यो)– ये कंपनी की वित्तीय स्थिति को दर्शाता है। IRDAI के अनुसार हर इन्शुरन्स कम्पनी की सॉल्वेंसी रेश्यो 150 % तो होनी ही चाहिए। इसका मतलब है की मान ले अगर कंपनी की टोटल इन्शुरन्स कवर देने की क्षमता 100 रूपए तक की है तो कंपनी के पास कम से कम 150 रूपए की पूँजी या भंडार या धन होना चाहिए।
मान लो एक साथ ही सभी लोगो ने क्लेम कर दिया (आम तौर पर ऐसा होना मुश्किल है पर अचानक आयी आपदा की स्थिति को ध्यान में रखकर ऐसा किया जाता है) तो कंपनी सबका क्लेम पास करके सबको उनके इन्शुअरन्स के 100 रूपए देने की क्षमता रखे और 50 रूपए कंपनी के पास भी रहे जाये ताकि कंपनी पूरी तरह से दिवालिया न हो जाये। इसलिए इन्शुरन्स लेते समय इसका ख्याल रहे की कंपनी की सॉल्वेंसी रेश्यो 150% या इससे ज्यादा हो।
claim settlement ratio (क्लेम रेश्यो)– इसको हमेसा प्रतिशत % में बताया जाता है। इसका मतलब है की कंपनी के पास कितने क्लेम आये है और कंपनी ने कितनो का क्लेम पास किया है मतलब इन्शुरन्स के पैसे दिए है।
ये 95 % से जयदा हो तो अच्छा मना जाता है मतलब अगर कमपनी के पास 100 क्लेम आये है तो उसमे से 95 क्लेम को पास कर दिया गया है और बस 5 – 6 % क्लेम किसी कारणवश नहीं पास हुए होंगे। ये 95% से जितना ज्यादा हो उतना अच्छा है। यह ये दर्शाता है की कमपनी अपने कस्टमर्स, उनके पैसे और उनके अधिकारों के साथ न्याय कर रही है।
- श्रीराम लाइफ इन्शुरन्स में कौन सा प्लान आपके लिए अच्छा है।
- लाइफ इन्शुरन्स लेते समय रखे इन बातो का ख्याल।
Life time renewal (लाइफ टाइम रिन्यूअल)– हर बीमाधारक ये चाहेगा की उसकी पालिसी या प्लान समय समय पर renew होती रहे। आप ये देखे की आपकी कंपनी ये ऑप्शन दे इस्पे कोई कैपिंग (सीमा) न हो।
Co-pay (को – पे)– इसका मतलब है की कंपनी और बीमाधारक दोनों मिलके पैसे देंगे। जब आपको अपने हेल्थ इन्शुरन्स के राशि की जरूरत पड़े तो एक हिस्सा आपको अपनी जेब से देना पड़ेगा और बाकि कंपनी देगी।
मान ले अगर आपका बीमा राशि 100 रूपये है और कंपनी ने 10 % co -pay रखा है तो अगर आपके हॉस्पिटल का बिल 100 रूपए ही आया तो उसमे से आपको 10 रूपए आपको अपनी तरफ से दने होंगे और कंपनी 90 रूपए ही देगी। तो ये जरूर सुनिश्चित कर ले की आपकी पालिसी में ये ना हो।
Cashless plan (कैशलेस प्लान)– ये आपकी हेल्थ पालिसी में होना चाहिए। इसका मतलब जब आपको चिकित्सा के लिए अस्पताल जाना पड़े तो अस्पताल और आपके चिकित्सा के खर्चे के लिए आपको तुरंत पैसे दने की जरूरत नहीं है। आप बिना पैसो के आसानी से इलाज करा सकते है।
मगर ये सुविधा आपको इन्शुरन्स कंपनी के नेटवर्क हॉस्पिटल मे ही मिलेगी।
Network hospital (नेटवर्क हॉस्पिटल)- हर इन्शुरन्स कंपनी के अपने अपने कुछ चुने हुए अस्पतालों से अनुबंध होते है। पर आप अपनी सुविधा और चुनाव के हिसाब से नॉन-नेटवर्क हॉस्पिटल में भी जा सकते है। कुछ सुविधाओं के चलते आपको नेटवर्क हॉस्पिटल में ही जाना पड़ता है। नेटवर्क और नॉन नेटवर्क होपिटल्स की सुविधाएं कुछ इस प्रकार है
- Cashless plan (कैशलेस प्लान) – इस प्लान के तहत आपको बिना पैसे के इलाज की सुविधा मिलती है।
- जल्द भुगतान – आपका क्लेम जल्दी पास हो जाता है।
- बहुत ही आसान प्रक्रिया– इसमें आपको ढेर सारे पेपर वर्क की जरूरत नहीं पड़ती। कंपनी और हॉस्पिटल आपसी तालमेल से सब मैनेज कर लेते है।
- लाभ – इन्शुरन्स कंपनी अपने कैशलेस हॉस्पिटल में इलाज करने पर कुछ छूट या अतिरिक्त लाभ प्रदान करती है।
नॉन- नेटवर्क हॉस्पिटल में
- जटिल प्रक्रिया – इसमें आपको बहुत सरे पेपर वर्क या दस्तावेज खुद जमा करने होंगे।
- क्लेम पास होने में देरी– इसमें आपके क्लेम पास होने में समय लग सकता है इसमें आपको थोड़ा धैर्य रखना होगा।
- रिमबर्समेन्ट – इसका मतलब आपको इलाज के खर्च के पैसे पहले स्वयं देंगे होने फिर बाद में आप क्लेम करके इन्शुरन्स के पैसे ले सकते है।
- लाभ – इसमें आपको कोई छूट या अतिरिक्त लाभ नहीं मिलता और आपको क्लेम के पुरे पैसे भी नहीं मिलते।
Day care procedure (डे केयर प्रोसीजर)– इसका मतलब है की अगर कोई ऐसी चिकित्सा या सर्जरी है जो दिन में या कुछ घंटो में हो जाती है, जिसमे आपको हॉस्पिटल में एडमिट होने की या रूम लेने की जरूरत नहीं है तो उसका खर्च भी इन्शुरन्स कंपनी ही उठाये। जैसे डेंटल ट्रीटमेंट या आँखों की सर्जरी।
Pre and post hospitalize expenses – इसका मतलब है की किसी सर्जरी या ट्रीटमेंट के पहले और बाद में रिकवरी होने तक का खर्च इन्शुरन्स कंपनी ही उठाएगी।
Hospital’s room rent (हॉस्पिटल रूम रेंट)– हॉस्पिटल के रूम रेंट, अलग अलग क्षेत्रो में अलग अलग होती है। जैसे छोटे शहरों के मुकाबले बड़े शहरों में जयदा रूम रेंट होगा और सरकरी अस्पतालों से निजी अस्पतालों में ज्यादा रेंट होगा। अब आप जरूरत के हिसाब से कहा इलाज करना पसंद करेंगे ये पहले से तय तो नहीं है। इसलिए ये सुनिश्चित कर ले की रूम रेंट प कोई सीमा (कैपिंग) न लगी हो।
Pre existing diseases– अगर आपको पहले से कोई बीमारी हो तो वो भी पालिसी में कवर होना चाहिए। ये खास करके सीनियर सिटीजन्स के लिए जब हेल्थ इन्शुरन्स ले रहे हो तो ये जरूर ध्यान रखे ध्यान रखे। क्यूंकि युवाओ से जयदा वृद्धों में पहले से बीमारी का होना आम बात है। जैसे BP, DIABETIS
Domiciliary procedure/ consultation– इसका मतलब है की अगर आप हॉस्पिटल न जाकर अपने घर पे कोई चिकित्सा करा रहे है तो उसका खर्च भी इन्शुरन्स कंपनी उठाये।
घर पर इलाज करना परिस्थितियों में लागु होते है-
- या तो आप बहुत ही ज्यादा असहाय है या परिस्थितिया ऐसी है की हॉस्पिटल नहीं जा सकते जैसा की कोविड के समय पर हुई थी।
- आप आयुष चिकित्स प्रणाली से अपना इलाज घर पे करा रहे है तबभी आपको ये सुविधा मिलनी चाहिए।
Critical illness– इसका मतलब कोई गंभीर बीमारी में (जैसे – कैंसर, ब्रेन सर्जरी) जिसमे हॉस्पिटल में एडमिट होने के खर्चे और अन्य मेडिकल के खर्चे भी आपके पालिसी में शामिल हो।
Maternity benefits– इसका फायदा महिलाओ उन महिलाओ को मिलता है जो माँ बनने वाली है या भविष्य में बनेंगी। पर ध्यान दे की इसका वेटिंग पीरियड या तो न हो या 1 साल से ऊपर न हो न हो। अगर अभी आपकी शादी नहीं हुई है तो आप वेटिंग पीरियड वाले प्लान ले सकती है।
No claim bonus – अगर आप पुरे साल स्वस्थ्य रहे और कोई इलाज या हॉस्पिटल के खर्चे की जरूरत नहीं पड़ी। और आपने क्लेम नहीं किया तो इन्शुरन्स की अवधी पूरी होने पर इन्शुरन्स कंपनी आपको बोनस के तौर पे कुछ प्रतिशत का लाभ देगी। ये पैसे आपको सीधे तौर पर नहीं दिए जाते ये आपकी बिमा राशि में जोड़ दिए जाते है।
जैसे अगर आपने 4 लाख की हेल्थ पालिसी ली है तो क्लेम नहीं करने पर 4 या 5 % (जितना कंपनी ने तय किया हो) बोनस के तौर पर आपकी बिमा राशि में जोड़ दि जाएगी। मतलब अगले साल से आपकी बिमा राशि 4 लाख 16 या 20 हज़ार (416000) हो जाएगी, उतने ही प्रीमियम में जितना आप पहले से दे रहे थे।
Free medical check ups– ये सुविधा भी आपके पालिसी में होनी चाहिए। आपको जब भी जरूरत पड़े आपकी मेडिकल चेक अप्स करा सके और ये खर्चे पालिसी में कवर होने चाहिए।
कौन कौन सी कंपनियां हेल्थ इन्शुरन्स देती है ?
ऐसे तो बहुत सी कंपनियां है हेल्थ इन्शुरन्स प्रोवाइड करती है पर कुछ शीर्ष की कंपनियों के नाम कुछ इस प्रकार से है
- टाटा ए आई जी (tata aig)
- आईसीआईसीआई लोम्बारड (ICICI lombard)
- बजाज आलियांज (bajaj allianz)
- मैक्स बूपा हेल्थ इन्शुरन्स (Max bupa health insurance)
- स्टार हेल्थ इन्शुरन्स (star health insuarnce)
- रिलायंस हेल्थ इन्शुरन्स (reliance health insurance)
कुछ ध्यान देने योग्य बातें
- कम खर्च वाले इलाज पर क्लेम न करे। अगर आपको कोई ऐसी आम बीमारी की चिकित्सा करनी है जो 1- 2 हज़ार रूपए में हो जायेगा तो इस छोटे खर्च के लिए क्लेम न करे। इससे आपको साल के अंत में no claim bonus नहीं मिलेगा।
- अपने लिए और अपनी फॅमिली के लिए फॅमिली फ्लोटर प्लान आप ले सकते है पर अगर आपको अपने माता पिता के लिए हेल्थ इन्शुरन्स लेना है तो अलग से उनका इन्शुरन्स ले। क्युकी ज्यादा उम्र होने के कारण उन्हें बीमारी होने की संभावना ज्यादा है। तो अगर आप सभी का साथ में प्लान लेते है तो कवरेज अमाउंट सबमें बट कर काम हो जाएगा।
- इन्शुरन्स में आपकी कमाई का एक हिस्सा लगने वाला है इसलिए अपनी हर जरूरत को ध्यान में रखे और प्लान की खोज करे की कौन सा प्लान आपके और आपके बजट के लिए बेस्ट होगा।
- Policybazaar जैसे वेबसाइट पर जाकर आप हर इन्शुरन्स कंपनी और उनके टर्म एंड कंडीशन को अचे से समझ सकते है। और कई प्लान के बिच में अंतर् भी करके देख सकते है की आपके लिए कौन सा प्लान अच्छा रहेगा।
निष्कर्ष
हम सब अपने कमाई का कुछ हिस्सा अपने भविष्य के लिए बचते है या इन्वेस्ट करते है। पर एक बीमारी हमारे सरे बचत को एक झटके में खत्म कर सकती है। और अगर पैसे काम पड़े तो बीमारी के कारण जान जाने का खतरा भी होता है। इनकी कारणों से बचने के लिए हम सबको अपने अपने बजट और जरूरत के हिसाब से हेल्थ इन्शुरन्स जरूर लेना चाहिए। एक तरह से ये भी आपके एक इनकम के रूम पे समय आने पर आपकी मदद करेगी। ऊपर दिए गए पॉइंट को अगर आप फॉलो करते हो तो ये आपकी मदद करेगा एक अच्छा हेल्थ इन्शुरन्स लेने में। अपने जीवन में जितनी जल्दी हो सके हेल्थ इन्शुरन्स जरूर ले।
प्रश्नोत्तर
हेल्थ इन्शुरन्स क्या है ?
हेल्थ इन्शुरन्स एक अनुबंध है बिमा कंपनी और बिमा करने वाले के बिच। हेल्थ इन्शुरन्स आपके बीमार पड़ने पर हॉस्पिटल के और इलाज के सरे खर्चे उठाता है। जिससे आपको पैसे की चिंता नहीं होती है और आपकी गाढ़ी कमाई भी बच जाती है। इसके लिए आपको इन्शुरन्स कंपनी को अपने प्लान के अनुसार प्रीमियम भरने पड़ते है।
हेल्थ इन्शुरन्स क्यों लेना चाहिए ?
अगर आप बहुत अमीर नहीं है और आपको कोई ऐसी बीमारी हो जाती है जिसका खर्च लाखो में है तो ऐसा खर्च उठाना बहुत ही मुश्किल है। और अगर पैसे के आभाव में इलाज न कराया जाये तो जान से हाथ भी धोना पड सकता है। ऐसे में आपका एक हेल्थ इन्शुरन्स आपकी जान बचने का पूरा खर्च भी उठता है और आपको पैसो की चिंता से मुक्त भी करता है। आप काम प्रीमियम देकर एक बड़ा कवरेज ले सकते है।
हेल्थ इन्शुरन्स कब लेना चाहिए ?
हेल्थ इन्शुरन्स एक छोटे से बचे का भी हो सकता है। अगर आप व्यस्क है और कमाऊ है तो 25 से 30 की उम्र तक इन्शुरन्स लेना अच्छा विकल्प है। आपकी उम्र जितनी काम होगी प्रीमियम भी उतना ही कम होगा जिससे आपके बजट पर कोई असर नहीं पड़ेगा। और कम प्रीमियम के साथ आप बड़ा कवरेज का लाभ भी उठा सकते है।
हमे हेल्थ इन्शुरन्स के लिए कितने कवरेज अमाउंट का प्लान लेना चाहिए ?
आपकी प्लान जैसी होगी वैसा ही आपका प्रीमियम भी होगा तो पहले आप अपना बजट देख ले तभी प्लान चुने। दूसरी बात एक आदर्श कवरेज अमाउंट 5 से 10 लाख रुपये का तो होना ही चाहिए।
हेल्थ इन्शुरन्स लेते समय किन बातों का ध्यान रखें ?
ऐसे तो बहुत सरे पॉइंट्स है जो ध्यान में रखने चाहिए मगर कुछ बाटे है जो आपको जरूर देखनी चाहिए इन्शुरन्स लेने से पहले
1. सॉल्वेंसी रेश्यो
2. क्लेम सेटलमेंट रेश्यो
3. कैशलेस प्लान
4 . नेटवर्क हॉस्पिटल आदि
इंडीविसुअल और फॅमिली हेल्थ इन्शुरन्स प्लान क्या है ?
इंडीविसुअल में सिर्फ एक व्यक्ति को कवर किया जाएगा और फॅमिली में आपके आपके साथ आपके परिवार जनो को भी शामिल किया जाएगा जैसे, पत्नी, बच्चे, माता, पिता, भाई, बहन आदि। फॅमिली के लिए आप फॅमिली फ्लोटर प्लान ले सकते है।